नंदू पासवान के सामने दुविधा और दुख का ऐसा पहाड़ खड़ा था कि उसे पार करना उसके लिए आसमान में लकीर खींचने के समान लग रहा था। उसकी आंखों के सामने एक तरफ जिंदा जलकर कंकाल बन चुके 5-5 लोगों के बिलखते परिवार थे, तो दूसरी तरफ अस्पताल में जीवन और मौत के बीच जूझ रहे वो 10 लोग थे, जो उसकी बेटी की शादी के साक्षी बनने के लिए घर से निकले थे।