जब देश में कांग्रेस जैसे राजनीतिक दल हों तो पाकिस्तान जैसे दुश्मनों की जरुरत ही क्या। विश्लेषण शुरु करने से पहले आपको थोड़ा पीछे ले चलते हैं।
बांग्लादेश में बुरी तरह मात खाने के बाद पाकिस्तानी सैनिक तानाशाह जिया-उल-हक के शासनकाल में दुश्मनों ने भारत को नुकसान पहुंचाने के लिए नई योजना बनाई थी। इसे ‘हजार घावों के जरिए मात देने’ की थ्योरी कहा गया। इसके तहत पाकिस्तानी सेना और उसकी बदनाम खुफिया संस्था आईएसआई ने कई छोटी लेकिन गंभीर साजिशों का सूत्रपात किया। जिसके तहत भारत भूमि पर खालिस्तानी, कश्मीरी सहित पूर्वोत्तर में कई अलगाववादी आंदोलनों को दुश्मनों ने हवा दी। जिससे कि भारत छोटे छोटे आंदोलनों में घिरकर कमजोर हो जाए।
आज भले ही पाकिस्तान की यह साजिश दम तोड़ती हुई दिखाई देती है। लेकिन लगता है कि कांग्रेस ने दुश्मन देश की इस थ्योरी को जिंदा करने का फैसला कर लिया है। सत्ता से बाहर होने के बाद बौखलाए कांग्रेसी नेताओं ने ताबड़तोड़ ऐसे आंदोलनों को हवा दी है, जिससे लगता है कि भारत को अब दुश्मनों की जरुरत ही नहीं रही।
नरेन्द्र मोदी से सत्ता छीनने के लिए कांग्रेस इतनी आतुर हो गई है कि देश में जगह जगह अलगाववाद, धार्मिक और जातीय विभेद के बीज बो रही है। देश के सीने पर यह ऐसे घाव हैं जो जल्दी भरेंगे नहीं।
पहला घाव : खालिस्तानियों को हवा देना
पिछले दिनों पंजाब सरकार में मंत्री रहे नवजोत सिंह सिद्धू लगातार विवादों में बने रहे। उन्होंने पाकिस्तान के दो दौरे किए। इमरान खान के शपथग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए किए गए पहले दौरे में उन्होंने सीमा पर भारतीय सिपाहियों का खून बहाने वाले पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष बाजवा को गले लगा लिया। लेकिन नवंबर 2018 के आखिरी दिनों में किए गए दूसरे दौरे में तो सिद्धू ने हदें ही पार कर दीं। उन्होंने पाकिस्तान के नागरिक खालिस्तानी आंदोलन के पैरोकार गोपाल चावला के साथ फोटो खिंचवाई।
पाकिस्तान से वापस लौटकर दिए गए सिद्धू के बयानों से यह स्पष्ट हुआ, कि वह कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के इशारों पर पाकिस्तान से पींगे बढ़ा रहे हैं। खास बात यह है कि खालिस्तान की आग देख चुके पंजाब के अनुभवी मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह लगातार सिद्धू पर लगाम कसने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन राहुल की शह पाकर सिद्धू पाकिस्तान और खालिस्तानियों से गलबहियां करने में कोई संकोच नहीं कर रहे।
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तो क्या माना जाए कि राहुल गांधी अपनी दादी इंदिरा गांधी वाली गलती कर रहे हैं। जब अकालियों को कमजोर करने के लिए इंदिरा ने भिंडरावाले को तरजीह दी। जिसनें बाद में पाकिस्तान से समर्थन हासिल करके इतना बड़ा बवाल खड़ा किया कि सेना को उसे नियंत्रित करने के लिए स्वर्ण मंदिर में घुसकर ब्लू स्टार करना पड़ा।
अब फिर से राहुल गांधी की शह पाकर सिद्धू खालिस्तानियों और उनके आका पाकिस्तान से संबंध बढ़ा रहे हैं। क्या कांग्रेस फिर से देश का दिल खालिस्तान का खंजर से छलनी करना चाहती है।
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दूसरा घाव : भीमा कोरेगांव में जातीय हिंसा
महाराष्ट्र में भीमा कोरेगांव में साल 2018 की शुरुआत में जमकर जातीय हिंसा हुई। यहां स्थानीय दलित और मराठा समुदाय के बीच विद्वेष फैलाने की कोशिश की गई। विवाद इतना ज्यादा बढ़ गया कि पूरे महाराष्ट्र में कई दिनों तक जनजीवन ठप रहा। कई जगह हिंसा और तोड़ फोड़ की घटनाएं हुईं। जिसमें राज्य की संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचाया गया।
इस मामले की जांच कर रही एजेन्सियों को पूरी घटना में वामपंथियों का हाथ होने का संकेत मिला। जिसके बाद कुछ शहरी नक्सलियों की गिरफ्तारी भी हुई। लेकिन सनसनी तब फैली जब यह पता चला कि वरिष्ठ कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह लगातार अराजक तत्वों के साथ संपर्क में थे।
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Agar aisa hai, to mujhe sarkaar giraftar kare. Pehle deshdrohi, ab Naxali. Isiliye, yahin se giraftar mujhe karaiye: Congress' Digvijay Singh on BJP's Sambit Patra statement that Singh's phone number has come up in documents found in anti-Naxal raids pic.twitter.com/I6CKGQOz3c
— ANI (@ANI) 4 सितंबर 2018
तो क्या माना जाए कि महाराष्ट्र में राजनीतिक फायदा उठाने के लिए कांग्रेस जातीय हिंसा और सामाजिक विभेद को बढ़ाने का काम कर रही थी।
तीसरा घाव: किसानों को भड़काना
दिल्ली में वामपंथी दलों से संबद्ध किसान संगठनों ने एक रैली की। इनका उद्देश्य किसानों की मांगो को सामने रखने से ज्यादा हंगामा खड़ा करना था। क्योंकि वह जिन मांगों को लेकर दिल्ली पहुंचे थे। उसमें से ज्यादातर समस्याओं पर सरकार ने पहले ही राहत दे रखी है। जैसे फसलों का समर्थन मूल्य बढ़ाना आदि।
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यह सभी संगठन वामपंथी हसिए-हथौड़े के झंडों से लैस थे। लेकिन इनके बीच पहुंचे राहुल गांधी। वह भी अकेले नहीं बल्कि अपने पूरे दल बल के साथ। वहां राहुल गांधी अपने साथ दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, CPI (M) के सीताराम येचुरी और नेशनल कांन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला को भी लेकर गए।
किसानों की इस रैली में राहुल गांधी ने जिस तरह केन्द्र सरकार पर जमकर हमला किया, उसे देखकर साफ लगता था कि यह राहुल गांधी का अपना जमावड़ा है।
दरअसल राहुल इन वामपंथी संगठनों के संबद्ध किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर मोदी सरकार को निशाना बना रहे थे। उन्होंने इस पूरे मूवमेन्ट को किसान बनाम बाकी बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
Rahul Gandhi at farmers’ protest in Delhi: If the loans of industrialists can be waived off, then the debt of farmers must be waived off as well. I assure the farmers of India, we are with you, don't feel afraid. Aapki shakti ne is desh ko banaya hai pic.twitter.com/r8Lzew4Ay0
— ANI (@ANI) 30 नवंबर 2018
तो क्या राहुल गांधी देश के शहरी और ग्रामीण समाज के बीच विभेद पैदा करने की कोशिश कर रहे थे।
चौथा घाव : बिहारी-गुजराती विवाद को हवा देना
अक्टूबर 2018 के पहले हफ्ते में गुजरात कांग्रेस के बड़े नेता और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के सिपहसालार अल्पेश ठाकोर ने एक मासूम बच्ची से बलात्कार की घटना को बहाना बनाकर हिंसा भड़काई और यूपी-बिहार के सभी लोगों को निशाना बनाना शुरु कर दिया।
अल्पेश ठाकोर कांग्रेस के विधायक होने के साथ साथ बिहार कांग्रेस के सह-प्रभारी भी थे। गुजराती में दिए गए अपने भाषण में उन्होंने कहा ‘बाहर के जो तमाम यहां आते है, क्राइम करते हैं, उनकी वजह से अपराध बढ़ा है, गांव में टकराव बढा है। गांवों के सामान्य लोगों को मारते है और अपराध करके वापस चले जाते है। ऐसे लोगों के लिए क्या हमारा गुजरात है?
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गुजरात में फैली हिंसा के दौरान सिर्फ अल्पेश ही नहीं बल्कि गुजरात कांग्रेस की बड़ी नेता और कांग्रेस विधायक गेनीबेन ठाकोर भी हिंसा के लिए भीड़ को भड़काते हुए कैमरे में कैद हुईं।
देखिए- कांग्रेसी विधायक के नफरत फैलाने वाले बोल
इस पूरे घटनाक्रम के दौरान एक तरफ तो अल्पेश और गेनीबेन जैसे गुजरात कांग्रेस के नेता यूपी-बिहार के लोगों के खिलाफ हिंसा फैला रहे थे। वहीं राहुल गांधी इस मामले में अपनी राजनीति चमकाने में जुटे हुए थे।
ग़रीबी से बड़ी कोई दहशत नहीं है| गुजरात में हो रहे हिंसा की जड़ वहाँ के बंद पड़े कारख़ाने और बेरोज़गारी है|
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) 8 अक्तूबर 2018
व्यवस्था और अर्थव्यवस्था दोनो चरमरा रही है|
प्रवासी श्रमिकों को इसका निशाना बनाना पूर्णत ग़लत है| मैं पूरी तरह से इसके ख़िलाफ़ खड़ा रहूँगा| pic.twitter.com/yLabmmZDwk
पांचवा घाव : ब्राह्मणवाद के नाम घृणा फैलाना
पिछले दिनों राहुल गांधी ने खुद को ब्राह्मण नेता के तौर पर स्थापित करने की भरपूर कोशिशें की। उनकी पूजा पाठ करते हुए और जनेऊ धारण की हुई तस्वीरों का प्रचार किया गया।
इसी दौरान राहुल गांधी के एक खास सिपहसालार सीपी जोशी ने पीएम मोदी और उमा भारती की जाति को निशाने पर लेते हुए एक घृणा फैलाना वाला बयान दिया। बाद में जब राहुल गांधी को एहसास हुआ कि इससे नुकसान हो सकता है तो उन्होंने सीपी जोशी का बयान बदलवाया।
सीपी जोशी का बयान शुद्ध रुप से कांग्रेस के अहंकार का प्रतीक था।
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लेकिन खास बात यह है कि वहीं कथित ब्राह्मण राहुल गांधी ने ब्राह्मणवाद का विरोध करने वाले ट्वीटर सीईओ जैक डोरसी के साथ फोटो खिंचाई।
राहुल और डोरसी की यह गलबहियां इस बात का प्रतीक थीं कि कैसे राहुल गांधी दोधारी राजनीति कर रहे हैं। एक तरफ वह खुद को ब्राह्मण बताते हैं वहीं दूसरी ओर ब्राह्मणवाद के विरोध का ढोंग करते हैं।
क्या राहुल गांधी देश की जनता को मूर्ख समझते हैं कि वह जब चाहें अपना स्टैण्ड बदल लें और कोई कुछ समझे ही नहीं।
पांचवा घाव : कश्मीर में अलगाववाद को मजबूत करने की कोशिश करना
कश्मीर में तो कांग्रेस का देशविरोधी स्टैण्ड जगजाहिर है। बल्कि सच तो यह है कि कश्मीर समस्या की कांग्रेस की देन है।
लेकिन इस बात को कांग्रेस ने हद ही कर दी। जब कश्मीर में राज्यपाल शासन के दौरान आतंकवादियों पर नकेल कसने लगी और लगा कि अब कश्मीर से अलगाववादी और आतंकवादियों का खात्मा ही हो जाएगा। तब कांग्रेस ने राष्ट्रीय हितों के ठीक उल्टा स्टैण्ड लिया। उन्होंने नेशनल कांफ्रेन्स और पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने की घोषणा कर दी।
पढ़िए-कश्मीर में कांग्रेस की साजिश
यह अलग बात है कि कांग्रेस की दाल गली नहीं और कश्मीर में उसकी सरकार नही बन पाई। लेकिन कांग्रेस के इस कदम से साफ पता चला कि कैसे उसे देशहित से ज्यादा आतंकियों और अलगाववादियों के हितों की फिक्र है।
कश्मीर में सरकार बनाने के कांग्रेस के प्रस्ताव को साफ तौर पर पाकिस्तान के इशारे पर उठाया गया कदम बताया गया था।
#WATCH: BJP national general secretary Ram Madhav says on dissolution of J&K assembly, "PDP & NC boycotted local body polls last month because they had instructions from across the border. Probably they had fresh instructions from across the border to come together & form govt." pic.twitter.com/wNjGSFmJbc
— ANI (@ANI) 22 नवंबर 2018
छठा घाव : हरियाणा को जाट आरक्षण आंदोलन की आग में घी डालना
फरवरी 2016 में हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन की आग भड़क गई। जिसमें 18 लोगों की जान गई और राज्य को 34 हजार करोड़ की संपत्ति का नुकसान हुआ। इस आंदोलन के दौरान बीजेपी सरकार में कैबिनेट मंत्री कैप्टन अभिमन्यु के घर पर हमला करके उसे तहस-नहस कर दिया गया।
बाद में जब मामले की जांच हुई तो ऐसे संकेत मिले कि इस आंदोलन में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा का हाथ हो सकता है।
पुलिस के हाथ कुछ ऐसी फोन कॉल रिकॉर्डिंग लगी। जिससे खुलासा हुआ कि जाट आरक्षण आंदोलन के बहाने हरियाणा की खट्टर सरकार को गिराने की साजिश की जा रही थी।
खालिस्तान की मांग कर रहे पाकिस्तान समर्थित सिखों के जरिए देश को तोड़ने की साजिश करना, महाराष्ट्र में दलितों को दूसरे समुदायों के खिलाफ भड़काना, किसानों के बहाने ग्रामीण आबादी के मन में शहर में रहने वालों के खिलाफ जहर भरना, गुजरात में यूपी-बिहार के लोगों के खिलाफ हिंसा फैलाना और उसपर बाकी देश में घूम-घूमकर राजनीति करना, खुद को ब्राह्मण बताते हुए ब्राह्मणवाद के विरोध का ढोंग करना, कश्मीर में आतंकियों और अलगाववादियों के समर्थन में साजिशें करना और हरियाणा मे जाटों को आरक्षण की मांग के लिए भड़काना।
क्या कांग्रेस इन घावों के जरिए अपनी राजनीति चमकाना चाहती है। क्या उसे नहीं पता कि सूचना क्रांति के इस युग में हर इंसान पूरी खबर रखता है। उसे अब धोखे में नहीं रखा जा सकता है।
Last Updated Dec 5, 2018, 6:31 PM IST