आरएसएस से डरे 'वामी' चले राम की शरण में

बीजेपी और आरएसएस के बढ़ते प्रभाव पर अंकुश लगाने की तैयारी में सीपीएम। भगवान से दूरी रखने वाली पार्टी मनाएगी ‘रामायण मासम’। धर्मग्रंथ रामायण को लेकर राज्य भर में होंगे सेमीनार।
 

CPM plans Ramayana month to counter BJP’s rise

ईश्वर, धर्म, भक्ति, भगवान से मीलों दूर रहने वाले कम्यूनिस्टों की भाव-भंगिमा बदली है, अब वो राम की शरण में जा रहे हैं। केरल में सत्ताधारी मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी राम का नाम जपने लगी है। भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस की बढ़ती सियासी चुनौती की काट वो ‘रामायण मासम’ मनाकर निकालने जा रहे हैं।
सीपीएम जो धर्म के प्रति अपनी बेरुखी को लेकर जानी जाती है, अब धार्मिक महीना मनाने की तैयारी कर रही है। इस माह में रामायरण महापुराण से संबंधित सेमिनारों, भाषण कार्यकर्मों और बैठकों का आयोजन किया जाएगा। पार्टी की सांस्कृतिक इकाई संस्कृति संघ की निगरानी में ये कार्यक्रम होंगे।
‘रामायण मासम’ की शुरुआत 17 जुलाई से होगी। इस दौरान 25 जुलाई को प्रदेश के हर ज़िले में बैठकों का आयोजन किया गया है और इसी दिन राज्य स्तरीय सेमिनार भी किया जाएगा।
परंपरागत तौर पर राज्य के हिंदुओं का वोट सीपीएम को जाता रहा है लेकिन भगवा ताकत की उभार के साथ ही इसमें सेंधमारी हो चुकी है।
राज्य के मंदिरों के प्रबंधन-प्रशासन में आरएसएस की भूमिका बढ़ती जा रही है। सीपीएम के सामने ये चुनौती है। ऐसे में पार्टी को लगता है कि रामायण के नाम पर अपनी मज़बूती बरकरार रख सकती है और भाजपा के प्रति लोगों के प्रेम पर ब्रेक लगा सकती है।
कन्नूर के रहने वाले केम मनोज माय नेशन से बातचीत में कहते हैं— “मैं कम्यूनिस्ट पार्टी का सदस्य हूं, मैंने कभी अपने बच्चों से मंदिर जाने के लिए नहीं कहा लेकिन अब वो जाते हैं तो इसमें बुराई क्या है। मेरा बेटा रामायण पढ़ता है तो वो इससे बहुत कुछ सीखेगा, समझेगा”।
कई कम्युनिस्ट अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यमिक विद्यालयों में अध्ययन करने की अनुमति नहीं देते हैं, या उनकी विचारधारा के कारण मंदिरों और अन्य धार्मिक स्थानों पर जाते हैं।
अब ये विचारधारा की ही तो बात है कि राज्य कम्यूनिस्ट पार्टी के बहुसंख्यक सदस्य ना तो अंग्रेजी मीडियम स्कूल का रुख़ करते हैं ना ही मंदिरों और भगवान में उनकी दिलचस्पी रही है।
 

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