कर्नाटक की कुमारस्वामी-कांग्रेस सरकार इस्कॉन को मिड-डे मील में लहसुन प्याज डालने के लिए मजबूर कर रही है।

कर्नाटक की  एक संस्था इस्कॉन अक्षय पात्र पूरे राज्य में हर दिन 4.43 लाख  बच्चों को दोपहर का  भोजन प्रदान करता  है, किन्तु  कुमारस्वामी सरकार चाहती है की बच्चों के भोजन  में प्याज और लहसुन भी शामिल किया जाये क्योंकि ये दो सब्जियां पोषण का अभिन्न अंग है परंतु यह संगठन की धार्मिक धारणा के  खिलाफ है।  इस विवाद को स्वयं सरकार और कांग्रेस के द्वारा  भड़काया जा  रहा  है।

Kumaraswamy Congress govt forcing ISKCON to use onion garlic in midday meal

कुमारस्वामी सरकार चाहती है की बच्चों के भोजन  में प्याज और लहसुन भी शामिल किया जाये क्योंकि ये दो सब्जियां पोषण का अभिन्न अंग है परंतु यह संगठन की धार्मिक धारणा के  खिलाफ है।  इस विवाद को स्वयं सरकार और कांग्रेस के द्वारा  भड़काया जा  रहा  है।

इस पर अक्षय पात्र का कहना है कि वे लोग भोजन में प्याज और लहसुन शामिल नहीं करते हैं। प्रचलित नियमों और मान्यताओं के अनुसार फाउंडेशन में केवल सात्त्विक खाद्य पदार्थ ही तैयार किए जाते हैं और वही परोसे भी जाते हैं। सरकार का प्याज और लहसुन पर बहस करना तर्कपूर्ण नहीं है। 

डीएनए की रिपोर्ट के अनुरूप इसके परिणामस्वरूप संगठन ने दिन में भोजन प्रदान करने की योजना से अपनी साझेदारी को बंद कर दिया है, जिसके अंतर्गत कर्नाटक में हर दिन लगभग 4.43 लाख बच्चे भोजन करते थे।  डीएनए   की एक रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने कर्नाटक सरकार के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया।

प्याज और लहसुन न केवल भोजन को पोषण से भरता है बल्कि भोजन का स्वाद भी बढाता है।  इन बातों को ध्यान में रखते हुए हमने फाउंडेशन से राज्य की बातों का पालन करने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने अभी तक हमारे पत्र का जवाब नहीं दिया है। यह बातें कर्नाटक के मध्य भोजन के संयुक्त निदेशक एमआर मारुति ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया। उन्होंने यह भी बताया कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि स्वाद के साथ धार्मिक मान्यताओं का भी सम्मान किया जाए। 

अक्षय पात्र ने एक विस्तृत बयान में अपनी बातों को स्पष्ट रूप में रखते हुए कहा कि हम यह आपको बताना चाहते हैं कि हमारे ताजा पके हुए भोजन एमएचआरडी और कर्नाटक सरकार द्वारा निर्धारित पोषण मानदंडों के  अनुरूप   में हैं। हमारा यह निरंतर प्रयास रहता है कि हम बच्चों को  अच्छा स्वास्थ्य और पोषण दे पाएं और सरकार द्वारा बच्चों की हेल्थ और न्यूट्रीशयन को बढ़ावा देने के लिए सरकार के प्रयासों को आगे ले जा सकें। ।

जैसा कि अक्षय पात्र द्वारा दावा किया जा रहा है, अगर पोषण कोई मुद्दा नहीं है तो फिर यह गैस्ट्रोनोमिकल फतवा क्यों जारी किया गया है?

अभी कुछ दिन पहले सावन के महीने में ग्रेटर नोएडा में ऐसी अफवाहें फैलाईं जा रहीं थी कि लोगो की भावनाओं का सामना करते  हुए, एक महीने के लिए चिकन की ब्रिकी पर रोक लगा दी जाएगी। हालांकि अफवाहों का कई लोगों ने उल्लंघन भी किया था। जब मुंबई में जैनों की भावनाओं का सम्मान करते हुए कुछ दिनों तक मांस की ब्रिकी पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक प्रस्ताव जारी किया गया था, तो लोगों ने इस बात का खुला उल्लंघन किया था। कुछ सुझावकारों ने प्रस्ताव का विरोध करने के लिए सडकों पर उतरकर चिकन तंदूरी खाया था। लेकिन आज के समय में भी यदि किसी को अपनी धार्मिक आस्था के खिलाफ कुछ खाने को मजबूर होना पड़े तो  ये बहुत ही अजीब बात  होगी।

लेकिन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बुद्धिजीवी खामोश हैं। आखिर इस्कॉन और अक्षय पात्र के धार्मिक अधिकारों की रक्षा के लिए कौन सामने आएगा? 


 

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