ममता vs सीबीआईः पांच बिंदुओं में जानें सारदा और रोजवैली घोटाले की कहानी

By Team MyNation  |  First Published Feb 5, 2019, 10:55 AM IST

पश्चिम बंगाल में बहुचर्चित चिटफंड घोटाला मामले की जांच कर रही सीबीआई और राज्य पुलिस के बीच टकराव से सियासी पारा गर्म है, लेकिन इन घोटालों की एक लंबी कहानी है, जिसके तार टीएमसी के कई नेताओं से जुड़ते हैं। 

सारदा समूह और रोज वैली समूह से जुड़े 20,000 करोड़ रुपये के दो पोंजी घोटाले हैं। 2013 में सामने आए ये मामले। दोनों कंपनियों ने बड़ी रकम लौटाने के नाम पर लाखों छोटे निवेशकों से कई साल तक हजारों करोड़ रुपये वसूले। जब पैसा लौटाने की बारी आई तो भुगतान में दिक्कतें आने लगीं।  

बिना मंजूरी के चल रही थी योजनाएं

दोनों समूहों की योजनाएं कथित तौर पर बिना किसी नियामक से मंजूरी लिए साल 2000 से पश्चिम बंगाल और अन्य पड़ोसी राज्यों में चल रही थीं।  ‘चिटफंड’ के नाम से मशहूर योजना के जरिये लाखों निवेशकों से हजारों करोड़ रुपये जमा किए गए। इन दोनों समूहों ने इस धन का निवेश यात्रा एवं पर्यटन, रियल एस्टेट, हाउसिंग, रिजॉर्ट और होटल, मनोरंजन और मीडिया क्षेत्र में किया। सारदा समूह 239 निजी कंपनियों का एक ग्रुप था। अप्रैल, 2013 में डूबने से पहले इसने 17 लाख छोटे निवेशकों से करीब 4000 करोड़ रुपये जुटाए थे। वहीं रोज वैली समूह ने भी इसी तरह 15,000 करोड़ रुपये जमा किए थे। 

मुख्य आरोपी हुए फरार

सारदा समूह के सुदिप्तो सेन और रोज वैली के गौतम कुंडु मामले में आरोपी हैं। बंगाल में ममता बनर्जी की टीएमसी के मजबूत होने के साथ ही ये लोग पार्टी के करीबी बन गए। दोनों समूहों की स्थिति  2012 के अंत में चरमरानी शुरू हुई। धीरे-धीरे भुगतान में खामियों की शिकायतें आने लगीं। सारदा समूह अप्रैल 2013 में डूब गया और सुदीप्तो सेन अपने विश्वसनीय सहयोगी देबजानी मुखर्जी के साथ पश्चिम बंगाल छोड़कर फरार हो गए। 

राजीव कुमार कनेक्शन

सारदा समूह के खिलाफ पहले मामला विधान नगर पुलिस कमिश्नर के समक्ष दर्ज कराया गया। 1989 बैच के आईपीएस अधिकारी राजीव कुमार इसे देख रहे थे। उन्होंने अपनी टीम के साथ 18 अप्रैल, 2013 को सुदिप्तो सेन और देबजानी मुखर्जी को कश्मीर से गिरफ्तार किया। इसके बाद राज्य सरकार ने राजीव कुमार के नेतृत्व में एक एसआईटी गठित की। एसआईटी ने टीएमसी से राज्यसभा के तत्कालीन सांसद और पत्रकार कुणाल घोष को कथित तौर पर सारदा चिटफंड घोटाले में शामिल होने के मामले में गिरफ्तार किया। हालांकि घोटाले से टीएमसी के लिंक जैसे-जैसे जुड़ते गए मामला धीमा पड़ने लगा।

टीएमसी नेताओं तक पहुंची आंच

कांग्रेस नेता अब्दुल मनान की एक याचिका के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मई, 2014 में मामले की सीबीआई जांच का आदेश दे दिया। तृणमूल कांग्रेस के कई शीर्ष नेताओं और श्रींजॉय बोस जैसे सांसदों को सीबीआई ने गिरफ्तार किया। रजत मजूमदार और तत्कालीन परिवहन मंत्री मदन मित्रा को भी गिरफ्तार किया गया। भाजपा के वरिष्ठ नेता मुकुल रॉय तब तृणमूल कांग्रेस के महासचिव थे, उनसे भी सीबीआई ने 2015 में इस भ्रष्टाचार के मामले में पूछताछ की थी। इसके बाद 2015 में रोजवैली समूह के गौतम कुंडु को भी प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तार कर लिया। दिसंबर, 2016 और जनवरी 2017 में तृणमूल कांग्रेस के सांसद तपस पाल और सुदीप बंधोपाध्याय को भी रोजवैली  स्कैम में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया।

ममता की कथित पेंटिंग्स

टीएमसी नेताओं तक पहुंची आंच कुछ ही समय में ममता बनर्जी तक पहुंच गई। दरअसल, सीबीआई ने कुछ पेंटिग जब्त कीं। इनके बारे में दावा किया गया कि ये ममता बनर्जी ने बनाई थीं और चिटफंड मालिकों ने इन सभी को बड़ी कीमत देकर खरीदा था। जनवरी में सीबीआई ने फिल्म निर्माता श्रीकांत मोहता को भी रोजवैली चिटफंड मामले में लिप्त होने के आरोप में गिरफ्तार किया। दो फरवरी को सीबीआई ने दावा किया कि राजीव कुमार ‘फरार’ चल रहे हैं और सारदा और रोजवैली पोंजी भ्रष्टाचार मामले में उनसे पूछताछ के लिए उनकी तलाश की जा रही है। 

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