'जहां बलिदान हुए मुखर्जी, वह कश्मीर अब भारत का है'

By Anshuman Anand  |  First Published Aug 6, 2019, 3:10 PM IST

जम्मू कश्मीर में धारा 370 और उसके विशेष राज्य का दर्जा खत्म करना भारतीय जनता पार्टी के लिए राजनीति से ज्यादा भावनात्मक मुद्दा था। क्योंकि यह मुद्दा उन्हें अपनी विचारधारा के पुरोधा श्यामा प्रसाद मुखर्जी से विरासत में हासिल हुआ था। यह वही डॉ. मुखर्जी हैं जिनका नाम  संसद में बहस के समय गृहमंत्री अमित शाह सहित कई बीजेपी नेताओं ने बार बार लिया। आईए आपको बताते हैं कि केन्द्र सरकार के वर्तमान कदम से श्यामा प्रसाद मुखर्जी का क्या रिश्ता था। आखिर क्यों उनके इस सपने को पूरा करने के नाम पर भाजपा ने इतना बड़ा रिस्क लिया। 
 

नई दिल्ली: साल था 1953 का। जब आजादी हासिल हुए मात्र छह साल हुए थे। लेकिन जम्मू कश्मीर के हालात तब भी इतने ही बदतर हुआ करते थे। उस समय कश्मीर में जाने के लिए भारतीयों को अलग से परमिट लेना पड़ता था। जिसके खिलाफ जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नारा दिया कि 'एक देश में दो विधान दो निशान, नहीं चलेगा नहीं चलेगा।'

पूरी जनसंघ पार्टी श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु और कश्मीर के मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला के बीच हुए समझौते का विरोध कर रही थी। क्योंकि इस समझौते में जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था। 

दिल्ली में इस समझौते का विरोध करते हुए श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने सीधा ग्राउंड जीरो यानी कश्मीर जाकर इसका मुखर विरोध करने की ठानी। 

नेहरु की कश्मीर नीति का विरोध करने ट्रेन से रवाना हुए डॉ. मुखर्जी
डॉ. मुखर्जी बिना परमिट लिए हुए ही 8 मई, 1953 को सुबह 6:30 बजे दिल्ली रेलवे स्टेशन से पैसेंजर ट्रेन में अपने समर्थकों के साथ सवार होकर पंजाब के रास्ते जम्मू के लिए निकले।  उनके साथ बलराज मधोक, अटल बिहारी वाजपेयी, टेकचंद, गुरुदत्त वैध और कुछ पत्रकार भी थे।

पंजाब के जालंधर पहुंचने के बाद डॉ. मुखर्जी ने बलराज मधोक को वापस भेज दिया और अमृतसर के लिए ट्रेन पकड़कर आगे के लिए चल दिए। रास्ते में उनके डिब्बे में गुरदासपुर के डिप्टी कमिश्नर मिले। उन्होंने कहा कि मैं पंजाब सरकार के निर्देश पर आपको गिरफ्तार करने आया हूं और अगले आदेश का इंतजार कर रहा हूं।

लेकिन श्यामा प्रसाद मुखर्जी को पूरे पंजाब में कहीं भी गिरफ्तार नहीं किया गया। पंजाब पहुंचने पर डिप्टी कमिश्नर ने उनसे मुलाकात करके बताया कि उन्हें निर्देश दिया गया है कि डॉ. मुखर्जी को आगे बढ़ने दिया जाए और उनकी गिरफ्तारी पंजाब में नहीं की जाए।  

डॉ. मुखर्जी की गिरफ्तारी एक साजिश के तहत हुई
इसके बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी रेल छोड़कर जीप से आगे बढ़े और उन्होंने रावी नदी पर बसे माधोपुर की सीमा पर चेकपोस्ट पार किया। जिसके बाद जम्मू कश्मीर की सीमा शुरु हो जाती थी। यहां पर भारत देश के कायदा कानून पीछे छूट जाने वाले थे। सुप्रीम कोर्ट का अधिकार क्षेत्र खत्म हो जाने वाला था। और यही डॉ. मुखर्जी के विरोधियों की योजना भी थी कि उन्हें ऐसी जगह गिरफ्तार किया जाए कि उन्हें किसी तरह की कानूनी मदद नहीं मिल सके। 

जैसे ही डॉ.मुखर्जी की जीप रावी नदी पर बने पुल के बीचोबीच पहुंची। वहां जम्मू व कश्मीर पुलिस के जवानों के दस्ते के साथ कठुआ के पुलिस अधीक्षक मिले। उन्होंने डॉ. मुखर्जी को राज्य के मुख्य सचिव का 10 मई, 1953 का एक आदेश सौपा, जिसमें राज्य में उनके प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगाया गया था।

पुलिस ने यहीं से डॉ. मुखर्जी को  पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत गिरफ्तार कर लिया। 

पहले क्यों नहीं किया गया गिरफ्तार?
ऐसे में सवाल यह उठता है कि अगर डॉ. मुखर्जी की गतिविधियों से कश्मीर की शांति और सुरक्षा के लिए खतरा मौजूद था तो उन्हें जम्मू कश्मीर में घुसने के पहले क्यों नहीं गिरफ्तार किया गया। 
प्रश्न यह उठता है कि यदि उनकी तथाकथित गतिविधियों से सार्वजनिक सुरक्षा एवं शांति को इतना ही बड़ा खतरा था, तो उन्हें जम्मू व कश्मीर के सीमा में प्रवेश करने से पहले ही क्यों नहीं गिरफ्तार किया गया। उनको पंजाब में गिरफ्तार करने की योजना क्यों बदल दी गई? 

गिरफ्तारी के बाद बेहद खराब स्थितियों में रखा गया डॉ. मुखर्जी को 
डॉ.मुखर्जी को बंदी बनाकर जिस जगह पर रखा गया था। वह एक छोटा सा मकान था। जिसके आसपास कुछ भी नहीं था। हालांकि यह निशात बाग़ के करीब था। लेकिन मुख्य श्रीनगर शहर से काफी दूर था। 
यहां पहुंचने के लिए कई सीढ़ियां चढ़नी पड़ती थी, जो कि पैर में खराबी वाले श्यामा प्रसाद मुखर्जी के लिए बेहद दर्दनाक था।  

इस मकान के 10/11 फुट के कमरे में श्यामा प्रसाद मुखर्जी को रखा गया। इस कमरे में सीलन बेहद ज्यादा थी। जिसके कारण श्यामा प्रसाद मुखर्जी की श्वांस की बीमारी उभर आई थी। लेकिन उनके लिए स्थायी रुप से किसी डॉक्टर की व्यवस्था नहीं की गई थी। जरुरत पड़ने पर श्रीनगर से डॉक्टर को बुलाया जाता था। जिसमें काफी समय लगता था। 

डॉ. मुखर्जी पर रखी गई थी कड़ी नजर 
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को कड़ी निगरानी में रखा गया था। उनकी बांग्‍ला में लिखी गई उनकी द्वारा चिट्ठियों की विशेष अनुवादक द्वारा जांच कराई जाती थी। जेल में रहने के दौरान उनके किसी भी दोस्त या रिश्तेदार को उनसे मिलने नहीं दिया गया, यहां तक कि उनके बड़े बेटे अनुतोष की अर्जी भी ठुकरा दी गई। वह जेल में प्रतिदिन डायरी लिखा करते थे, जो कि उनके बारे में जानकारी का एक अच्छा स्त्रोत हो सकता था परन्तु शेख अब्दुल्ला की सरकार ने उनकी मौत के बाद उस डायरी को जब्त करके गायब कर दिया गया। 

जेल में उनकी मौत से आती है साजिश की गंध
22 जून की सुबह डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की तबीयत अचानक बेहद बिगड़ गई। काफी देर तक श्वांस की बीमारी से जूझने के बाद प्रशासनिक अधिकारी उन्हें एक प्राईवेट टैक्सी से लेकर गए और उन्हें किसी अच्छे अस्पताल में भर्ती कराने की बजाए राजकीय अस्पताल के स्त्री प्रसूति वॉर्ड में भरती कराया गया।

एक नर्स जो कि डॉ.मुखर्जी के जीवन के अंतिम दिन उनकी सेवा में तैनात थी, ने डॉ.मुखर्जी की बड़ी बेटी सविता और उनके पति निशीथ को काफी आरजू-मिन्नत के बाद श्रीनगर में एक गुप्त मुलाकात के दौरान यह बताया था कि उसी ने डॉ. मुखर्जी को वहां के डॉक्टर के कहने पर आखिरी इंजेक्शन दिया था। उसने बताया कि जब डॉ मुखर्जी सो रहे थे तो डॉक्टर जाते-जाते यह बता कर गया कि ‘डॉ मुखर्जी जागें तो उन्हें इंजेक्शन दे दिया जाए और उसके लिए उसने एम्प्यूल नर्स के पास छोड़ दिया।

कुछ देर बाद जब डॉ. मुखर्जी नींद से जगे तो उस नर्स ने उन्हें वह इंजेक्शन दे दिया। लेकिन इंजेक्शन देते ही उनकी तबीयत बेहद बिगड़ गई। वह चिल्लाने लगे कि मुझे जलन हो रही है। नर्स ने डॉक्टर से बात करके सलाह लेने की कोशिश की। लेकिन तब तक वह बेहोश हो चुके थे। बाद में बेहोशी के दौरान ही उनकी मौत हो गई। 

समर्थकों ने लगाया था जहर देने का आरोप
जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी का शव उनके गृह प्रदेश बंगाल पहुंचा तो उनका रंग नीला पड़ा हुआ था। जिसे देखकर समर्थकों और परिजनों को शक हुआ था कि उन्हें जहर दिया गया है। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि 'शेख(जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला) ने श्यामा को जहर दिया है'। 

डॉ. मुखर्जी की संदेहास्पद मौत की नहीं हुई कोई जांच
डॉ. मुखर्जी की मां जोगमाया देवी ने नेहरू के 30 जून, 1953 के शोक सन्देश का 4 जुलाई को उत्तर देते हुए पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने उनके बेटे की रहस्मयी परिस्थितियों में हुई मौत की जांच की मांग की। जवाब में पंडित नेहरु ने कई अच्छी अच्छी बातें लिखीं लेकिन किसी तरह की जांच की मांग को खारिज कर दिया। 

नेहरु का कहना था कि  'मैंने कई लोगों से इस बारे में मालूमात हासिल किए हैं, जो इस बारे में काफी कुछ जानते थे। मैं आपको सिर्फ इतना कह सकता हूं कि मैं एक स्पष्ट और इमानदार नतीजे पर पहुंच चुका हूं कि इसमें कोई रहस्य नहीं है और डॉ.मुखर्जी का पूरा ख्याल रखा गया था'।

एक राष्ट्र, एक निशान, एक विधान के लिए अपनी जान देने वाले डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु आज भी एक रहस्य है। जिसका राज अब तक नहीं खुल पाया है। 

भारतीय जनता पार्टी ने धारा 370 को हटाते हुए जम्मू कश्मीर के विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने का कदम उठाकर उनका बेहद पुराना सपना पूरा कर दिया है। आज स्वर्ग में दिवंगत डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की आत्मा को शांति मिल गई होगी। 

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