Premanand Maharaj Vrindavan: पतिव्रता स्त्री को अपने पति के प्रति कैसा व्यवहार करना चाहिए और यदि पति का व्यवहार ठीक न तो इस स्थिति में क्या करें? वृंदावन वाले प्रेमानंद महाराज ने इस विषय पर भी अपने भक्तों का मार्गदर्शन किया है। महाराज श्री ने पौराणिक दृष्टांतों से समझाया कि कैसे एक साधारण स्त्री भी अपने पतिव्रत धर्म से कठिन परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल कर लेती है। जानें क्या कहा प्रेमानंद महाराज ने…  

पति को भगवान मानकर करें सेवा
प्रेमानंद महाराज ने कहा कि ‘स्त्री को अपने पति में भगवान का भाव रखकर उसकी सेवा करनी चाहिए। जो स्त्री इस नियम का पालन करती है, उसके लिए मोक्ष भी असंभव नहीं है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, माता अनुसूया ने अपने पातिव्रत्य के बल से त्रिदेवों यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश को 6 माह का शिशु बना दिया था। इसलिए पतिव्रता स्त्री को लिए कुछ भी असंभव नहीं है।’ 

कब होती है पत्नी की परीक्षा?
प्रेमानंद महाराज ने कहा कि- 
धीरज धर्म मित्र अरु नारी, आपद काल परिखिअहिं चारी
यानी विपत्ति के समय ही धैर्य, धर्म, मित्र और नारी की परीक्षा होती है। पत्नी को चाहिए कि यदि पति पर कोई विपत्ति भी आ जाए तो उसका साथ न छोड़े। चाहे पति कंगाल ही क्यों न हो जाए या मरणासन्न स्थिति में ही क्यों न हो। हर परिस्थिति में पत्नी को पति का साथ देना चाहिए।  

भूलकर भी न करें ये गलती
प्रेमानंद महाराज ने कहा कि पत्नी को भूलकर भी पति का अपमान नहीं करना चाहिए। अगर पति का आचरण बुरा हो तो भी उसे कटु वचन नहीं बोलना चाहिए क्योंकि आपके कर्मों से फल से ही वो आपको पति रूप में प्राप्त हुआ है। सबकुछ भगवान पर छोड़कर शुद्ध मन से पति की सेवा करें, यही पातिव्रत्य धर्म है। 

सावित्री यमराज से ले आई थी पति के प्राण
प्रेमानंद महाराज ने पातिव्रत्य धर्म की महिमा बताते हुए कहा कि अनेक धर्म ग्रंथों में सावित्री-सत्यवान की कथा का वर्णन मिलता है। सावित्री परम पतिव्रता स्त्री थी। जब यमराज ने सावित्री के पति सत्यवान के प्राण हर लिए तो सावित्री ने उसके पीछे-पीछे यमलोक तक पहुंच गई और यमराज से अपने पति के प्राण पुन: वापस लेकर आई गई। इसलिए पातिव्रत्य धर्म की महिमा का कोई पार नहीं है।


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