सऊदी अरब में तेल कंपनी आरामको पर हुआ हमला कोई साधारण हमला नहीं है। इसकी वजह से दुनिया भर के तेल उत्पादन पर असर पड़ा है। इस हमले के बाद जिस तरह सऊदी अरब और अमेरिका बौखलाते हुए ईरान को निशाने पर ले रहे हैं, उससे पूरी दुनिया पर एक बड़ी जंग का खतरा मंडराने लगा है। यही वजह है कि आरामको पर हुए हमले के बाद पूरी दुनिया के देशों की नजर इसके बाद के घटनाक्रम पर है। इस हमले की जिम्मेदारी ली है अंसारुल्लाह आतंकवादी संगठन ने-
नई दिल्ली: सऊदी अरब की आरामको दुनिया की सबसे बड़ी तेल निर्यातक कंपनी है। यहां पूरी दुनिया के तेल उत्पादन के दसवें हिस्से का कारोबार होता है। आरामको तेल कंपनी प्रतिदिन 1 करोड़ बीस लाख बैरल तेल का उत्पादन कर सकती है और इस समय वह 70 लाख बैरल तेल हर दिन निर्यात कर रही थी, जो संसार की किसी भी तेल कंपनी से अधिक है।
1. सऊदी अरब के लिए जबरदस्त आर्थिक झटका
लेकिन वहां पर यमन के अंसारुल्लाह आतंकी संगठन द्वारा किए गए ड्रोन हमलों ने यहां से हो रहे तेल उत्पादन को भारी नुकसान पहुंचाया है। ब्लूमबर्ग ने सऊदी अरब के उच्च स्तरीय सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट दी कि आरामको कंपनी ने इस हमले के बाद अपना तेल उत्पादन आधा करते हुए दैनिक 5 मिलियन बैरल कर दिया है। हालांकि सऊदी प्रशासन की ओर से कहा जा रहा था कि तेल उत्पादन में कोई कमी नहीं होने दी जाएगी।
इस तेल कंपनी के साथ सऊदी अरब और अमेरिका के हित बहुत गहरे जुड़े हुए हैं। आरामको पर हुआ हमला अमेरिकी हितों के लिए बहुत बड़ा झटका है। इस हमले की वजह से सऊदी अब और अमेरिका बौखला गए हैं। जिसकी वजह से पूरी दुनिया पर युद्ध के बादल मंडराने लगे हैं।
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भारत के लिए भी बड़ा खतरा है अंसारुल्लाह
2. सऊदी अरब और अमेरिका ईरान को मानते हैं जिम्मेदार
ईरान की समाचार एजेन्सी इरना की रिपोर्ट के अनुसार अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने शनिवार की रात सऊदी क्राउन प्रिंस बिन सलमान से टेलीफ़ोन पर बात की। जिसमें उन्होंने कहा कि अमेरिका, सऊदी अरब की रक्षा के लिए तैयार है। ट्रंप ने आरामको पर यमनी सेना और अंसारुल्लाह के ड्रोन हमले की ओर संकेत करते हुए कहा कि यह हमला अमरीका और दुनिया की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा।
अमरीका के कट्टरपंथी माने जाने वाले सीनेटर लेड्सी ग्राहम ने सऊदी अरब के तेल प्रतिष्ठानों पर यमनी के ड्रोन हमले पर बौखलाते हुए अमरीका से जवाबी कार्यवाही और ईरान के तेल प्रतिष्ठानों पर हमले की मांग कर डाली।
रुस की समाचार एजेन्सी रशा टुडे की रिपोर्ट के अनुसार अमरीका के डेमोक्रेट सीनेटर लेड्सी ग्राहम ने शनिवार को यमनी सेना और स्वयं सेवी बलों की ओर से पूर्वी सऊदी अरब के तेल प्रतिष्ठानों पर भीषण हमले के बाद कहा कि अमरीकी सरकार को भी ईरान के तेल प्रतिष्ठानों पर हमला कर देना चाहिए।
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3. इन प्रमुख वजहों से सऊदी अरब और अमेरिका को है ईरान पर शक
आरामको पर हमला बहुत सटीक इंटेलिजेन्स जानकारी के आधार पर किया गया है। जो कि यमन के अंसारुल्लाह आतंकवादियों के बस में नहीं है। जब तक ईरान उसकी मदद ना करे।
दूसरी बात यह है कि बक़ैक़ और हरैस आयल फ़ील्ड यमन की राजधानी सनआ से लगभग 1300 किलोमीटर दूर हैं तो इन ड्रोन विमानों ने इतनी लंबी दूरी कैसे पूरी की और उनका सुराग़ नहीं लगाया जा सका, कैसे ड्रोन विमानों को इतनी लंबी दूरी तय करने का ईंधन मिला? क्या यह विमान सअदा से ही उड़े थे।
तीसरी बात यह है कि क्या सऊदी अरब के भीतर कुछ गुट मौजूद हैं जो यमन की मदद कर रहे हैं?
चौथी बात यह है कि हो सकता है अंसारुल्लाह के आतंकवादियों ने इन ड्रोन विमानों को किसी समुद्री जहाज़ द्वारा फारस की खाड़ी के इलाक़े में पहुंचाया गया हो और सऊदी तट के क़रीब पहुंचने के बाद वहां से इन ड्रोन विमानों ने उड़ान भरी हो। जिसकी संभावना सबसे ज्यादा है।
पांचवीं बात यह है कि हमला करने वाले अंसारुल्लाह आतंकियों के प्रवक्ता ने कहा है कि भविष्य में सऊदी अरब पर और हमले किए जा सकते हैं। यह बिना किसी बड़े देश की शह के नहीं हो सकता है।
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4. सऊदी अमेरिकी तेल प्रतिष्ठानों पर लगातार हो रहे हैं हमले
एक साल से कम अवधि में आरामको कंपनी से संबंधित प्रतिष्ठानों पर यह तीसरा हमला है। पहला हमला मई महीने में हुआ जब सात ड्रोन विमानों ने पूरब पश्चिम तेल पाइपलाइन के पंपिंग प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया था। दूसरा हमला 17 अगस्त को शैबा आयल फ़ील्ड पर हुआ था जो रोज़ाना लगभग पांच लाख बैरल तेल पैदा करता है। तीसरा हमला शनिवार की सुबह हुआ जो अब तक का सबसे बड़ा हमला था।
यह सभी हमले यमन के अंसारुल्लाह आतंकियों ने किए हैं। यह वो लड़ाकू प्रतिरोधक मोर्चा है जिसका नेतृत्व ईरान कर रहा है । अंसारुल्लाह आतंकियों और ईरान में आपस में घनिष्ट संबंध हैं।
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5.पिछले कुछ वर्षों में बेहद आक्रामक हो गए हैं सऊदी अरब और अमेरिका
सऊदी अरब कुछ बरस पहले तक मध्यपूर्व के सबसे सुरक्षित देशों में से एक था। लेकिन जब से क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान के हाथ में सत्ता आई है। तबसे सऊदी नीतियां बेहद आक्रामक हो गई हैं। सऊदी अरब ने सीरिया व बहरीन में हस्तक्षेप किया और यमन में सीधे तौर पर युद्ध में उतर गए।
इसकी वजह से उसका पुराना शत्रु ईरान भी घबरा कर जंग की तैयारी में जुट गया है। अमेरिका सऊदी अरब का सबसे पुराना और विश्वस्त सहयोगी है। इस इलाके में उसके आर्थिक हित दांव पर लगे हुए हैं। ऐसे में जंग जैसी किसी भी स्थिति में सऊदी अरब के पक्ष में उतरना उसकी मजबूरी होगी। पिछले कुछ दिनों में ईरान और अमेरिका के बीच जो तनाव बढ़ता हुआ दिख रहा है। उसमें सऊदी अरब की भूमिका सबसे अहम है।
लेकिन मध्य पूर्व में अगर हालात ऐसे ही बिगड़ते रहे तो दुनिया को जंग की आग से कोई नहीं बचा सकता है।
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Last Updated Sep 16, 2019, 9:44 AM IST