आरामको तेल कंपनी ड्रोन हमले से अमेरिका और सऊदी अरब को भारी नुकसान हुआ है। इस हमले की जिम्मेदारी यमन के अतिवादी हुती विद्रोहियों के प्रवक्ता यहया अस्सरीअ ने ली है। जिसे 'अंसारुल्लाह' के नाम से भी जाना जाता है। भारत में भी इसके खिलाफ एनआईए जांच कर रही है।
नई दिल्ली: यमन में अब्दर अबू हादी की सरकार के खिलाफ अतिवादी शिया संगठन 'अंसारुल्लाह' यानी हुती विद्रोहियों ने संघर्ष छेड़ रखा है। जिन्हें पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्लाह सालेह के वफादार समर्थन दे रहे हैं
ईरान समर्थित 'अंसारुल्लाह' और हुती चरमपंथियों के खिलाफ है सऊदी अरब और पश्चिमी देश
इसमें सऊदी अरब और पश्चिमी देश वर्तमान राष्ट्रपति हादी की तरफ से हुती चरमपंथियों के खिलाफ लड़ाई में उतरे हुए हैं। जिसके बाद 'अंसारुल्लाह' ने सऊदी अरब के आबकाइक में स्थित उसकी तेल कंपनी आरामको पर ड्रोन अटैक किया।
हुती विद्रोही शिया हैं। उनका उत्तर पश्चिम यमन के ज्यादातर हिस्सों पर कब्जा है। ईरान उनकी पीठ पर है।
सऊदी अरब की अगुवाई वाले गठबंधन ने बीते क़रीब चार साल से यमन के हूती विद्रोहियों के ख़िलाफ़ सीधा संघर्ष छेड़ा हुआ है। सऊदी अरब लगातार आरोप लगाता रहा है कि ईरान हूती विद्रोहियों का समर्थन कर रहा है। हालांकि, ईरान इससे इनकार करता रहा है।
देखिए कैसे अंसारुल्लाह की करतूतों ने दुनिया में युद्ध का खतरा पैदा कर दिया है
भारत के लिए भी बड़ा खतरा है अंसारुल्लाह
आरामको पर हुआ हमला दिखाता है 'अंसारुल्लाह' की ताकत
सऊदी अरब की तेल कंपनी आरामको पर हुए ड्रोन हमले को अरब जगत के विख्यात टीकाकार अब्दुल बारी अतवान साफ तौर पर अंसारुल्लाह अतिवादी संगठन का कारनामा मानते हैं। जिसने सऊदी सत्ता प्रतिष्ठान में बहुत अंदर तक पैंठ बना ली है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यमन के चरमपंथियों के पास ऐसी तकनीक पहुंच गई है कि जिसके जरिए सऊदी अरब के अंदर लगातार हर दिन हज़ारों की संख्या में ड्रोन भेज रहे हैं। उससे काफी नुकसान हो रहा है। खाड़ी से लाल सागर तक जाने वाली पाइप लाइनें, पेट्रो कैमिकल प्रतिष्ठान, एयरपोर्ट और बाकी आधारभूत ढांचे को भी उन्होंने काफी नुकसान पहुंचाया है।
हुती चरमपंथी(अंसारुल्लाह) इतने लंबे समय तक लड़ाई लड़ने में इसलिए भी कामयाब हो रहा है क्योंकि यमन के पूर्व राष्ट्रपति अली सालेह ने जो हथियार रूस और चीन से हासिल किए थे, वो हूतियों के हाथों में पहुंच गए हैं। वो उन्हें लगातार इस्तेमाल कर रहे हैं।
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यमन पर कब्जे के लिए क्यों हो रही है मारामारी
यमन पर फिलहाल सऊदी अरब और पश्चिम समर्थक अब्दर अबू हादी की सरकार है। जिसे सऊदी अरब, यूएई सहित कई दूसरे देशों का समर्थन हासिल है। हादी समर्थक यमन की फौज को ट्रेनिंग, हथियार ब्रिटेन, फ्रांस और अमरीका मुहैया कराते रहे। यमन को यूएई और सऊदी अरब ने बांट लिया। दक्षिणी यमन में यूएई की दिलचस्पी थी और उत्तर में सऊदी अरब की।
अमेरिका यमन में अपना सैन्य अड्डा बनाना चाहता है। यमन की रणनीतिक स्थित इसकी अहमियत को बढ़ा देती है। यह देश लाल सागर और हिंद महासागर को अदन की खाड़ी से जोड़ने वाले जलडमरूमध्य पर स्थित है। ये इलाका बहुत महत्वपूर्ण है। यहां से दुनिया का दो तिहाई तेल गुजरता है। एशिया से यूरोप और अमरीका जाने वाले जहाज भी जाते हैं। ये व्यापार और शिपिंग का सबसे व्यस्त समुद्री मार्ग है। यमन में चीन और रूस की भी दिलचस्पी है। जो ईरान के जरिए हुती और अंसारुल्लाह को समर्थन देते रहते हैं। अंसारुल्लाह ने सऊदी अरब के हवाई अड्डों और अहम ठिकानों पर हमलाकर उन्हें दबाव में दिया है।
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भारत के लिए भी बड़ा खतरा है अंसारुल्लाह
भारत के लिए भी खतरनाक हैं अंसारुल्लाह आतंकवादी
आतंकवादी संगठन अंसारुल्लाह सिर्फ सऊदी अरब और पश्चिमी देश ही नहीं बल्कि भारत के लिए भी चिंता का कारण हैं। भारतीय जमीन पर हमले की साजिश रच रहे अंसारुल्लाह से जुड़े 14 संदिग्धों को सऊदी अरब ने कुछ ही दिनों पहले भारतीय सुरक्षा एजेन्सियों के हवाले किया था।
जिसके बाद पिछले 20 जुलाई 2019 को तमिलनाडु में अंसारुल्लाह के 16 ठिकानों पर एनआईए ने एक साथ छापा मारा था। जिसमें अंसारुल्लाह के खतरनाक इरादों पर से पर्दा उठा था। यह भारत में इस्लामिक स्टेट जैसा शासन चाहते हैं।
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Last Updated Sep 16, 2019, 9:42 AM IST