उत्तर प्रदेश में आगामी लोक सभा चुनाव के लिए लगातार बड़े नामों की उम्मीदवारी चर्चा का विषय बनी हुई है। इसी क्रम में अब समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आजमगढ़ से चुनाव लड़ने का फैसला किया हैं। 2014 में मोदी लहर के बावजूद उनके पिता व सपा पार्टी संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी।
उत्तर प्रदेश में आगामी लोक सभा चुनाव के लिए लगातार बड़े नामों की उम्मीदवारी चर्चा का विषय बनी हुई है। इसी क्रम में अब समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आजमगढ़ से चुनाव लड़ने का फैसला किया हैं। 2014 में मोदी लहर के बावजूद उनके पिता व सपा पार्टी संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी। जानकारों के मुताबिक यादव- मुस्लिम बाहुल्य सीट होने के कारण अखिलेश ने अपने लिए लगभग सुरक्षित सीट चुनी है। इस सीट पर चुनाव लड़कर वो अपनी साख मजबूत करने के साथ सपा और गठबंधन के कार्यकर्ताओं को भी जमीन पर मिलकर काम करने के लिए उत्साहित कर सकेंगे। वहीं आजमगढ़ सीट से लगी लगभग आधा दर्जन सीटों पर भी इसका असर पड़ सकता है।
आजमगढ़ सीट पर यादवों का कब्जा रहा है
आजमगढ़ तमसा नदी के तट पर स्थित पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक महत्वपूर्ण जिला है। यहाँ 12 मई को वोट पड़ेंगे। आजमगढ़ सीट पर पारंपरिक रूप से यादवों का ही वर्चस्व रहा है। सन 1952 के बाद से इस सीट पर चाहे जिस भी पार्टी ने चुनाव जीता हो, लेकिन ज़्यादातर सांसद, यादव ही चुने जाते रहे है। वर्ष 2014 के आम चुनाव में सपा के मुलायम सिंह यादव ने भाजपा के रमाकांत यादव को मात्र 66000 वोटों से पराजित किया था। लेकिन इस बार सपा- बसपा गठबंधन होने के चलते मुस्लिम वोटों के साथ दलित वोटों के इक्कठे होने से अखिलेश को फायदा होगा। बड़े अंतर से जीत का फायदा आजमगढ़ से लगी हुई पूर्वांचल की अन्य सीटों पर भी दिखेगा।
वहीं, अखिलेश के आजमगढ़ से चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद भाजपा एक बार फिर आजमगढ़ से सांसद रह चुके रमाकांत यादव को टिकट दे सकती है। चुनावी विश्लेषकों के अनुसार यादवों का गढ़ होने और पहले सपा में भी रह चुके रमाकांत यादव, सपा और क्षेत्र की रणनीति को बेहतर समझते है और यहीं भाजपा के लिए मुफीद भी रहेगा। क्योंकि 2014 में मोदी लहर के बाद भी मुलायम सिंह यादव ने यहाँ से विजय हासिल की थी। रमाकांत यादव यहाँ से तीन बार चुनाव जीत चुके है। 2009 में भाजपा के टिकट पर और उससे पहले एक बार सपा और बसपा से। भाजपा पहली बार 2009 में यहाँ से विजयी हुई थी।
बता दें कि 2014 के आम चुनाव में मुकाबला समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव और बीजेपी के रमाकांत यादव के बीच हुआ था। जिसमें सपा के मुलायम सिंह को 3,40,306 (35.4%) वोट मिले जबकि रमाकांत यादव को 277,102 यानि (28.9%) वोट मिले वहीं बसपा के शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली 266,528 (27.8%) वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे। वहीं कांग्रेस (1.9 फीसदी) वोट पाकर चौथे स्थान पर रही। हालांकि इस बार कांग्रेस के लिए प्रियंका गांधी भी, पूर्वांचल में गंगा यात्रा के द्वारा अपने खोये हुए वोट बैंक को जिंदा करने की कोशिश कर रही है।
आजमगढ़ का सामाजिक समीकरण
गौरतलब है कि आजमगढ़ का जातीय समीकरण हमेशा से यादव उम्मीदवारों के पक्ष में रहा है, चाहे पार्टी कोई भी हो। लेकिन, अब जब सपा-बसपा गठबंधन साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं तब मुस्लिम और दलितों के वोट ना बिखरने से सपा के लिए स्थिति अनुकूल होगी। आजमगढ़ में लगभग चार लाख यादव मतदाता, तीन लाख मुस्लिम मतदाता और लगभग 2.75 लाख दलित मतदाता हैं।
वहीं 2011 की जनगणना के बाद आजमगढ़ जिले की कुल आबादी 46.1 लाख है जिसमें 22.9 लाख पुरुषों और 23.3 लाख महिलाओं है। जबकि धर्म आधारित आबादी के बात करे तो 84% लोग हिंदू समाज के हैं जबकि 16% मुस्लिम समाज के हैं। यहां की साक्षारता दर 71% है जिसमें 81% पुरुष और 61% महिलाएं साक्षर हैं। आजमगढ़ संसदीय सीट के तहत 5 विधानसभा क्षेत्र आते हैं, जिसमें सगड़ी, मुबारकपुर, गोपालपुर, , आजमगढ़ और मेहनगर शामिल है। बता दें कि भाजपा के पास यहाँ एक भी विधानसभा सीट नहीं है।
आजमगढ़ पूर्वांचल का एक पिछड़ा जिला है यहाँ पर उद्योग धंधे नहीं है, केवल थोड़ा बहुत हथकरघा और साड़ी का काम बचा हुआ है। यहाँ के युवा पलायन के लिए मजबूर है, चाहे जो भी सरकार रही हो किसी ने इस जिले के विकास पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया, पिछली सपा सरकार मे तो आजमगढ़ जिले से करीब 3-4 मंत्री थे, लेकिन यहाँ का कोई विकास नहीं हुआ। हालांकि आजमगढ़ हमेशा से पूर्वांचल में राजनीति का एक बड़ा केंद्र रहा है।