रक्षा मंत्रालय तीनों सेनाओं के आधुनिकीकरण करे लिए पैसों का इस्तेमाल उचित तरीके से करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। रूस के साथ होने वाले एस-400 एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम  के खरीद सौदे में नरेंद्र मोदी सरकार देश के लगभग एक बिलियन डॉलर यानी करीब 6500 करोड़ रुपये बचाए हैं। इस सौदे को 2018 के अंत तक अंतिम रूप दिया जा सकता है। 

एस-400 प्रणाली से दुश्मन के लड़ाकू विमान, सर्विलांस उपकरण और बैलिस्टिक मिसाइल को 380 किलोमीटर की दूरी से प्रभावी तरीके से नाकाम किया जा सकता है। 

नाम जाहिर न करने की शर्त पर सरकार के शीर्ष सूत्रों ने 'माय नेशन' को बताया, ''रूसी पक्ष से इस संबंध में वार्ता पूरी हो चुकी है। हम रूस से 960 मिलियन डॉलर यानी लगभग एक बिलियन डॉलर का डिस्काउंट लेने में सफल रहे हैं।''

सूत्रों के अनुसार, रक्षा मंत्रालय ने इस सौदे के लिए बजट - एकसेप्टेंस ऑफ नेसेसिटी (एओएन) - को मंजूरी दे दी है। पहले यह करीब 6.2 अरब डॉलर था, लेकिन रूस के साथ वार्ता के बाद यह सौदा करीब 5.3 अरब डॉलर में तय हो गया है। 

आमतौर पर किसी भी हथियार प्रणाली को खरीदने के लिए रक्षा खरीद परिषद (डीएसी) द्वारा स्वीकृत राशि अंत में बढ़ जाती है। सूत्रों के अनुसार, रूस से छूट हासिल करने की असल वजह अमेरिका का 'काटसा' प्रतिबंध यानी काउंटर अमेरिकाज एडवसिरीज थ्रू सेंक्सन एक्ट था। इस एक्ट से अमेरिका दूसरे देशों के एस-400 मिसाइल खरीदने पर बैन लगाना चाहता था। 

इसके बाद रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंत्रालय की खरीद इकाई को छूट हासिल करने के लिए रूस के साथ ज्यादा से ज्यादा मोलभाव करने का निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि इस छूट से जितने भी पैसे बचेंगे, उन्हें सैन्य बलों के आधुनिकीकरण के लिए खर्च किया जाएगा। 

अमेरिकी प्रतिबंध के बावजूद भारत इस मिसाइल प्रणाली को खरीद रहा है। चीन ने इस प्रणाली को अपनी इनवेंटरी में शामिल कर लिया है। संभावना है कि अगर भारत रूस से इस मिसाइल सिस्टम को नहीं खरीदता तो पाकिस्तान इसे खरीदने की कोशिश कर सकता है। 

रूस को भारत के साथ एस-400 सौदे से चीन के भड़के की आशंका है। रूस ने चीन के खुद प्रणाली को विकसित करने के लिए एस-400 का छोटा संस्करण उपलब्ध कराया है, जबकि भारत पूरी मिसाइल प्रणाली खरीद रहा है।  

अमेरिका के भी एस-400 के एवज में भारत को वैकल्पिक मिसाइल प्रणाली की पेशकश किए जाने की संभावना है। लेकिन रूस की रक्षा प्रणाली को वायुसेना के लिए गेम चेंजर माना जा रहा है। इस प्रणाली की पांच रेजीमेंट की तैनाती के बाद यह किसी भी मिसाइल हमले से बचाने के लिए कवच का काम करेगी। दुश्मन देश किसी तरह के हवाई हमले में कामयाब नहीं हो पाएगा। 

सूत्रों के मुताबिक, रक्षा सौदों में छूट हासिल करने के लिए रक्षा मंत्रालय ने वार्ताकार समिति से हर तरह से मोलभाल करने को कहा था ताकि उन्हें राफेल विमान सौदे की तरह इस सौदे में भी भारी छूट मिल सके। (नई दिल्ली से अजीत दुबे की रिपोर्ट)