Hindu Tradition: परिवार में जब भी किसी बच्चे का जन्म होता है तो सभी लोग उसके अलग-अलग नाम रखते हैं। वहीं मुख्य नाम राशि के अनुसार रखा जाता है। वर्तमान में ट्रेंडी और फेशनेबल नामों का चलन ज्यादा हो गया है। पहले के समय में लोग अपने बच्चों का नाम भगवान के नाम पर रखते थे जैसे लीलाधर, मोहन, शिवशंकर, कैलाश आदि। क्या आप जानते हैं बच्चों का नाम भगवान के नाम पर रखने की परंपरा कैसे शुरू हुई। इससे जुड़ी एक कथा भी है जो इस प्रकार है…

ये है अजामिल की कथा
श्रीमद्भागवत के अनुसार, पहले के समय में अजामिल नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वह अधर्म के काम ही करता था। न तो वह कभी भगवान की पूजा करता और न ही कभी कोई धर्म का कार्य करता। अजामिल ने एक वेश्या से विवाह कर लिया, जिससे उसकी कईं संतान हुई।
एक बार जब अजामिल घर के बाहर बैठा था तो कुछ संत उसके घर पर भिक्षा लेने आए। अजामिल ने उन्हें दुत्कार कर भगा दिया। उनमें से एक संत ने देखा कि अजामिल की पत्नी गर्भवती तो कहां कि ‘तुम अपने होने वाली संतान का नाम नारायण रखना।’ ऐसा कहकर संत वहां से चले गए।
जब अजामिल के यहां पुत्र का जन्म हुआ तो उसे संत की बात याद आई तो उसने बिना सोचे-समझे अपने पुत्र का नाम नारायण रख दिया। नारायण अजामिल का सबसे छोटा पुत्र था, इसलिए प्रिय भी था। अजामिल छोटी-छोटी बातों पर नारायण को पुकारा करता था।
जब अजामिल का अंत समय आया और यमदूत उसे लेने आए तो वह जोर से चिल्लाया ‘नारायण-नारायण’। तभी वहां भगवान विष्णु के दूत प्रकट हुए और उन्होंने यमदूतों को वहां से जाने को कहा और स्वयं अजामिल को लेकर वैकुंठ लोक आ गए। यहां आकर अजामिल को आश्चर्य हुआ।
अजामिल ने भगवान विष्णु के दूतों से पूछा कि ‘ मैंने तो जीवन भर कभी कोई धर्म कार्य नहीं किया, तो फिर भगवान ने मुझे वैकुंठ लोक क्यों प्रदान किया है?’ दूतों ने कहा कि ‘अपने पुत्र नारायण को पुकारते-पुकारते तुमने भगवान श्रीहरि को प्रसन्न कर लिया, इसलिए तुम्हारी सद्गति हुई है।’ 
श्रीमद्भागवत की इस कथा को सुनकर ही पहले के समय में लोग अपने बच्चों का नाम भगवान के नाम पर रखते थे ताकि जाने-अनजाने में ही सही अपने मुख से भगवान का नाम निकलता रहे, जिससे उन्हें सद्गति की प्राप्ति हो।

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