नई दिल्ली: देश की इन दस लोकसभा सीटों पर कांटे की टक्कर है। सबने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। कोई किसी से कम नहीं दिख रहा है। ऐसे में यह तय करना मुश्किल है कि यहां से कौन जीतेगा। ऐसे में सबसे बड़ी मुश्किल है केन्द्र में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी के सामने। क्योंकि अगर इन दस सीटों पर उसे किसी भी वजह से जीत हासिल नहीं हुई तो भले ही बीजेपी को अकेले पूर्ण बहुमत मिल जाए, लेकिन उसकी जीत का मजा अधूरा ही रहेगा। 

इस लिस्ट में पहले नंबर पर आती है 

1.    अमेठी (उत्तर प्रदेश) 
अमेठी गांधी खानदान की परंपरागत सीट रही है। यहां से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी चुनाव लड़ रहे हैं और उनके सामने हैं बीजेपी की केन्द्रीय मंत्री और जबरदस्त वक्ता स्मृति ईरानी। वह पिछली बार यानी 2014 में भी राहुल का चुनौती देने के लिए उतरी थीं। लेकिन तब बीजेपी की ओर से स्मृति ईरानी के नाम की घोषणा चुनाव के मात्र 20 दिन पहले हुई थी। जिसकी वजह से उन्हें यहां प्रचार के लिए बेहद कम समय मिला था। लेकिन इसी कम समय में स्मृति ईरानी ने कांग्रेसी दिग्गज के सामने कठिन चुनौती खड़ी की। 
उन्होंने इतना धुआंधार प्रचार किया कि राहुल गांधी के सामने एक बार तो हार का खतरा ही मंडराने लगा था। पिछले चुनाव में स्मृति ईरानी को 300748(लगभग तीन लाख) वोट मिले। जबकि राहुल गांधी को 408651(लगभग चार लाख) वोट हासिल हुए। 

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यानी मात्र 20 दिनों के प्रचार में स्मृति ईरानी राहुल गांधी के इतने करीब पहुंच गई थीं कि उनकी जीत का अंतर मात्र एक लाख रह गया था। लेकिन इस बार स्मृति ईरानी के पास पूरे पांच साल का समय था। इस दौरान वह अमेठी के लोगों से लगातार संपर्क में रहीं हैं। शायद यही वजह है कि राहुल गांधी ने खतरे को भांपते हुए केरल की वायनाड सीट से भी पर्चा भर दिया है। 
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अगर अमेठी में बीजेपी को जीत हासिल हुई तो उसे कांग्रेस पर मनोवैज्ञानिक बढ़त मिल जाएगी। जानिए कैसे अमेठी में वोट खरीदकर जीतती है कांग्रेस

2.    भोपाल (मध्य प्रदेश)
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की सीट से कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह खड़े हैं। हाल ही में बीजेपी ने यहां से साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को खड़ा किया है। इन दोनों के बीच संबंध यह है कि हिंदू आतंकवाद के जुमले को दिग्विजय सिंह ने ही प्रचलित किया था और उसका शिकार बनीं साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर।

 
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भोपाल सीट पर बात सिर्फ पार्टी या विचारधारा की नहीं है। यहां पर दिग्विजय सिंह को चुनौती देने उतरी साध्वी प्रज्ञा ने पिछले नौ सालों तक जेल में बंद रहकर जो अमानवीय यातनाएं झेली हैं। उसके जिम्मेदार कहीं न कहीं दिग्विजय सिंह भी हैं। ऐसे में बीजेपी के लिए यह सीट निकालना इसलिए भी जरुरी हो जाता है कि इससे यह साबित होगा कि जनता ने कांग्रेस के हिंदू आतंकवाद के झूठ का नकार दिया है। 
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इसके अलावा यहां से साध्वी प्रज्ञा को जनादेश मिलता है तो यह उनके लिए नैतिक जीत साबित होगी और कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह, जो कि दस सालों तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, उनके लिए बेहद शर्मनाक होगा। 

3.    रामपुर (उत्तर प्रदेश)
रामपुर सीट बेहद शर्मनाक कारणों से पिछले दिनों बहुत ज्यादा चर्चा में रही। यहां से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार आजम खान ने अपनी प्रतिद्वंदी बीजेपी की महिला प्रत्याशी जया प्रदा के उपर बेहद आपत्तिजनक टिप्पणी की। मामला इतना गरम हो गया कि रामपुर सीट पूरे देश में चर्चा का विषय बन गई। 


आजम खान ने कहा कि 'जिसको हम ऊंगली पकड़कर रामपुर लाए, उनकी असलियत समझने में आपको 17 बरस लगे, मैं 17 दिन में पहचान गया कि इनके नीचे का %@$*!(आपत्तिजनक शब्द) खाकी रंग का है।'  आजम की टिप्पणी एक महिला के सम्मान के विरुद्ध थी। यहां से जया प्रदा की जीत इसलिए जरुरी है क्योंकि यह संदेश जाना चाहिए कि देश की जनता महिला विरोधी मानसिकता के लोगों को चुनकर संसद नहीं भेजना चाहती। 

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4.    बेगूसराय(बिहार)
बिहार की बेगूसराय सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय है। यहां बीजेपी दिग्गज गिरिराज सिंह के सामने मुख्य चुनौती राष्ट्रीय जनता दल के तनवीर हसन पेश कर रहे हैं। लेकिन इन दोनों के बीच खड़े हैं जेएनयू के छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार। जो कि सामने से तो बीजेपी उम्मीदवार को चुनौती दे रहे हैं। लेकिन पर्दे के पीछे से उनकी भूमिका दूसरी है। 


दरअसल कन्हैया कुमार को यह सोचकर विपक्ष ने टिकट दिया है कि वह अपनी भूमिहार जाति के वोटों में सेंध लगाएंगे, जिससे उसी जाति से आने वाले गिरिराज सिंह की जीत की संभावना धूमिल पड़ जाएंगी। जिसका फायदा स्पष्ट रुप से राजद उम्मीदवार तनवीर हसन को मिलेगा। 
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लेकिन इसके अलावा एक बात और है जो बेगूसराय सीट पर मुकाबले को दिलचस्प बनाती है। वह ये है कि कन्हैया कुमार वही शख्स हैं जिनपर देशद्रोही नारे लगवाने के आरोप में मुकदमा चल रहा है और वह कई बार खुलकर सेना और देश के विरोध में बयान दे चुके हैं। वह यहां से सिर्फ और सिर्फ राजद की जीत सुनिश्चित करने के लिए खड़े हैं। 
ऐसे में बेगूसराय पर गिरिराज सिंह की जीत से यह संदेश जाएगा कि बेगूसराय की जनता देशद्रोह के आरोपियों के साथ नहीं है और वह उनकी साजिश को बखूबी समझती है।   

5.    पटना सिटी(बिहार)
बिहार की राजधानी पटना के अंतर्गत आने वाली इस सीट पर दो दिग्गज खड़े हैं, जो दोस्त से दुश्मन बनकर एक दूसरे के सामने ताल ठोक रहे हैं। एक तरफ हैं बीजेपी से बगावत करके कांग्रेस का दामन थामने वाले शत्रुघ्न सिन्हा तो दूसरी तरफ हैं राम मंदिर मामले पर हिंदुओं का पक्ष रखने वाले केन्द्रीय मंत्री औऱ बीजेपी दिग्गज रविशंकर प्रसाद। दोनों ही कायस्थ समुदाय से आते हैं। 

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लेकिन यहां मुकाबला इसलिए अहम हो जाता है क्योंकि कांग्रेस में जाने के पहले शत्रुघ्न सिन्हा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ जमकर जहर उगला था। इसलिए इस सीट पर बीजेपी के जीत हासिल करना प्रतिष्ठा का सबसे बड़ा प्रश्न है। क्योंकि अगर यहां से शत्रुघ्न सिन्हा को बढ़त मिलती है तो यह बीजेपी शीर्ष नेतृत्व की रणनीतिक क्षमता पर प्रश्नचिन्ह होगा।  

6.    आजमगढ़(उत्तर प्रदेश)
यहां से समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव मैदान में हैं। जो कि उत्तर प्रदेश में बसपा प्रमुख मायावती के साथ महागठबंधन बनाकर मैदान में हैं। बीजेपी ने अखिलेश के सामने भोजपुरी फिल्मों से सुपरस्टार निरहु यानी दिनेश लाल यादव को टिकट दिया है, जो कि आजमगढ़ के स्थानीय निवासी हैं। 
बीजेपी के लिए इस सीट से चुनाव जीतना इसलिए जरुरी है कि अगर यहां से अखिलेश यादव जीत जाते हैं तो इसका मतलब होगा कि उनके महागठबंधन पर जनता ने मुहर लगा दी है। जो कि भविष्य में बीजेपी के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता है। 

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उत्तर प्रदेश विधानसभा में भी बीजेपी की ही सरकार है। ऐसे में बीजेपी की दूरगामी रणनीति के नजरिए से आजमगढ़ सीट पर जीत हासिल करना उसके लिए बेहद जरुरी है। 

7.    माढ़ा(महाराष्ट्र) 
महाराष्ट्र की माढा सीट एनसीपी प्रमुख शरद पवार का गढ मानी जाती है और यहां से मौजूदा सांसद एनसीपी नेता विजय सिंह मोहिते हैं। जो कि अब बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। 

दरअसल मोहिते यहां से अपने बेटे रणजीत सिंह को टिकट दिलाना चाहते थे लेकिन शरद पवार ने इसकी मंजूरी नहीं दी। जिसके बाद मोहिते के बेटे रणजीत भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। बीजेपी नेताओं ने शरद पवार के किले में सेंध लगाने के लिए मोहिते के बेटे को मैदान में उतार दिया।

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माढा वह सीट है जहां से विजय सिंह मोहिते ने देश में मोदी लहर के बावजूद 4,89,989 वोट बटोर कर एनसीपी के टिकट पर जीत हासिल की थी। लेकिन अब वह बीजेपी की तरफ आ चुके हैं। बीजेपी के लिए यह सीट जीतना इसलिए जरुरी है क्योंकि इस जीत के बाद वह शरद पवार के किले में सेंध लगा देगी। जो कि उसके भविष्य की रणनीति के लिए बहुत बेहतर साबित होगा।

8.    जादबपुर(पश्चिम बंगाल)
पश्चिम बंगाल की जाधवपुर सीट भी ऐसी ही एक सीट है जहां पर जीत हासिल करना किसी भी पार्टी के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है। यह सीट अहम इसलिए है क्योंकि यही से तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी की राजनीतिक यात्रा शुरु हुई थी। टीएमसी ने यहां से बांग्ला फिल्म अभिनेत्री मिमी चक्रवर्ती को टिकट दिया है। जबकि बीजेपी ने इस सीट पर लड़ने के लिए टीएमसी छोड़कर आए अनुपम हाजरा को टिकट दिया है। वहीं सीपीएम ने अपने बड़े नेता रंजन भट्टाचार्य को यहां से चुनावी जंग में उतारा है।